Mahabharat Doha lyrics in Hindi-Ranjha quotes

Mahabharat Doha lyrics in Hindi

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Mahabharat Doha lyrics in Hindi-Ranjha quotes

 

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क्रुद्ध सर्पिनी बन गयी सुन्दर उपवन बेल | 
दोष किसी का क्या भला भाग्ये खिलाये खेल || 

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चन्द्रवंश के चंद्र का असमय यह अवसान | 
सिंघासन सुना हुआ राजभवन सुनसान || 

 

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माता यह संभव नहीं भीष्म करे व्रत त्याग | 
चाहे शीतल सूर्य हो बरसे शशि से आग || 

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जीवन दाता एक है समदर्शी भगवान
जैसी जिसकी पात्रता वैसा जीवन दान |
तमस रजस सद्रुणवती माता प्रकृति प्रधान 
जैसी जननी भावना वैसी ही संतान || 

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सत्यवती की साधना भीष्मवृत्ति का त्याग |
जागे जिनके जतन से भरतवंश के भाग ||  

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धीर धुरंधर भीष्म का शिष्य धनुर्धर वीर | 
उदित हुआ फिर चन्द्रमा अन्धकार को चिर || 

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दे हंसकर वर को विदा वीर वधु की रीत | 
राजधर्म की नित ये क्षत्राणी की प्रीत || 

 

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दे अशीष ऋषि देव ने तुम्हे सदा वरदान | 
गोद भरे जुग जुग जिए भाग्यवंत संतान || 

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सुख दुःख में समरस रहे जीवन वही महान | 
राजभवन या वनगमन दोनों एक समान || 

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समय भूमि गोपाल की भूले जब संसार | 
धार सुदर्शन चक्र की हरे भूमि का भार || 

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नारी तेरे दुःख में नारायण दुखमंत | 
रो मत तेरी कोक में आएंगे भगवंत || 

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अंतवंत छः दीप हैं सप्तम दीप अनंत |
दो आंचल के दीप हैं बलदाउ बलवंत ||

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कृष्ण पक्ष की अष्टमी अर्धरात्रि बुधवार 
कारागृह में कंस के भयो कृष्ण अवतार |
सिंह राशि के सूर्य है उदित उच्च के चंद्र
देवन दीन्हि दुंदुभि, तार मध्य स्वर मन ||

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मेघ निछावर हो रहे बरसे सौ सौ धार
दमक दमक दामिनी कहे देखौं मुख एक बार | 
छत्र बन्यौ ब्रजराज हित फ़न फैलाए नाग
मथुरा तेरे त्याग से जागे ब्रज के भाग || 

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जाने जमुना जग नहीं श्री हरी को अवतार
पावन पद परसन चढ़ी बढ़ी जमुन जल धार | 
धार मध्य वसुदेव जब अकुलाए असहाय
श्री हरी ने रवि सुताये हित दियो चरण लटकाए || 

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चली कुमारी नंदिनी आए नंद कुमार |
त्याग बिना संभव नहीं जीव जगत उद्धार ||

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अत्याचारी कंस की कुमति बनी तलवार |
अंत तुझे खा जाएगा तेरा अत्याचार ||

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दया धर्म जब जब घटे बढ़े पाप अभिमान |
तब तब जग में जन्म ले जग पालक भगवान ||

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धीर धरो माँ देवकी दूर न दिन सुख मूल |
अश्रु बनेंगे जननी के कल्पलता के फूल ||

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मारक संहारक नहीं उद्धारक श्रीनाथ
सदगती पाई असुर ने मर कर हरी के हाथ |
कुमति गई पाई सुमति अहम् बन गया हंस
नारायण जी के दर्शन हुए शांत हो गया कंस ||